स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय |Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी,जन्म, गुरु का नाम, पत्नी का नाम,पिता का नाम,स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है?,स्वामी विवेकानंद कितने घंटे ध्यान करते थे?,स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन 

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स्वामी विवेकानंद एक हिंदू भिक्षु थे और भारत के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेताओं में से एक थे। वह सिर्फ एक आध्यात्मिक दिमाग से अधिक था; वह एक विपुल विचारक, महान वक्ता और भावुक देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद के जीवन न कई लोगों को प्रेरणा दी है। वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत ” मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों ” के साथ करने के लिए जाना जाता है । उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।स्वामी विवेकानंद के दिखाएं मार्ग पर चल कर कई लोगों ने अपने जीवन को एक नई दिशा दी है। इस लेख के जरिए हम आपको स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekananda Biography in Hindi) के जीवन परिचय के बारे में बताएंगे।इस लेख को अंत तक पढ़े।

 

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय  ( Swami Vivekanand Short biography In Hindi)

नामनरेन्द्रनाथ दत्त
घरेलु नामनरेन्द्र और नरेन
मठवासी [Monk] बनने के बाद नामस्वामी विवेकानंद
पिता का नामविश्वनाथ दत्त
माता का नामभुवनेश्वरी देवी
भाई – बहन9
जन्म तिथी12 जनवरी, 1863
जन्म स्थानकलकत्ता, भारत
राष्ट्रीयताभारतीय
गुरु का नामरामकृष्ण परमहंस
शिक्षा – दीक्षाबेचलर ऑफ़ आर्ट
संस्थापक [Founder]रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ
फिलोसोफीआधुनिक वेदांत और राज योग
साहित्यिक कार्य[Literary Work]राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरु [My Master], अल्मोड़ा से कोलोंबो तक दिए गये सभी व्याख्यान [Lectures].
अन्य महत्वपूर्ण कार्यन्यू यॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना, केलिफोर्निया में ‘शांति आश्रम [Peace Retreat]’ और भारत में अल्मोड़ा के पास अद्वैत आश्रम की स्थापना.
उल्लेखनीय शिष्य[ Notable Disciples ]
 
अशोकानंद, विराजानंद, परमानन्द, अलासिंगा पेरूमल, अभयानंद, भगिनी [Sister] निवेदिता, स्वामी सदानंद.
मृत्यु तिथी4 जुलाई, 1902
मृत्यु स्थानबेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन(Swami Vivekananda biography in hindi)

स्वामी विवेकानंद  का जन्म (swami vivekananda jayanti) 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था। उनके पिता हाईकोर्ट (High Court) के एक प्रसिध्द वकील  थे। नरेंद्र के पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त को कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम भुनेश्वरी देवी जो एक धार्मिक विचार की महिला थी, और हिंदू धर्म के प्रति कफि यास्था रखती थी। नरेंद्र को 9 भाई बहन थे। दादा जी का नाम दुर्गाचरण दत्त  फारसी और संस्कृत के विद्वान वक्ति थे। वे भी अपने घर परिवार को छोड़कर साधु बन गए।

स्वामी विवेकानन्द जी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था प्यार से लोग उन्हें नरेंद्र बुलाया करते थे। ये बचपन से अत्यंत कुशाग्र और दुधिमान के साथ बहुत नटखट भी थे। बचपन में अपने सहपाठियों के साथ बहुत किया करते थे, कभी-कभी मौका मिलने पर अधियापको से भी सरारत करने से नहीं चूकते थे। भगवान को जानने की उत्सुकता में माता पिता कुछ ऐसे सवाल पूछ देते की जानने के लिऐ उन्हे ब्रहमणो के यहा जाना परता। 1884 में उन्होंने अपने पिता जी साथ छूट गया और परिवार की सारी जिमेदार उन्ही पर आ गया घर की स्थिति बहुत खराब थी। बहुत गरीब होने के बाबजूद भी नरेंद्र बड़े ही अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते थे और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते थे। स्वामी विवेकानंद अपना जीवन गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किए बिना, खुद भोजन की बिना चिंता के गुरू की सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था।

स्वामी विवेकानंद का शिक्षा(teachings of swami vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द का प्रारम्भ शिक्षा उनके घर में ही हुआ। 1871 में 8 साल की उम्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन सस्थान में नामांकन करवाए, जहां से उन्होंने स्कूल की पढ़ाई की। 1877 अपने परिवार के साथ रायपुर चले गए फिर एक साल बाद 1877 में अपने घर या गए। कलकत्ता के प्रसिडेंसी कॉलेज  के परवेश परीक्षा में प्रथम डिविजन से पास होने वाला एक मात्रछात्र थे। कॉलेज के समय स्कूल में हो रहे खेल कूद प्रतियोगिता में हमें भाग लेते थे। उन्होंने दर्शनसास्त्र, धर्म, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, काला और साहित्य जैसे विषयों की शिक्षा प्राप्त किए थे।

इसके अलाव वेदउपनिषद, भागवत,गीता, रामायणमहाभारत और कई हिंदू सस्त्रो का गहन अधियान किए थे। उसके बाद भारतीय सस्ती संगीत का भी प्रशिक्षण ग्रहण किए। स्कांतिश चर्च कॉलेज असेंबली इस्टीट्यूशन से पश्चिमी तर्कपश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास अध्ययन किए। 1884 में उन्हे काला स्नातक की डिग्री प्राप्त की।1860 में उन्होंने स्पेंसर का किताब एजुकेशन को बंगाली में अनुवाद किए। उसके बाद उन्होंने 1884 में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। महासभा सस्थां के प्रधाना अध्यापक ने लिखा नरेंद्र सच में एक बहुत बुद्धिमान वेक्ति हैं।

मैने कई सारे अलग अलग जगहों  यात्रा किए है, पर उनके जैसा प्रतिभाशाली वेक्ति कभी नही देख यहां ताकि वे जर्मन विश्वविद्यालय के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं देखें। इसलिए उन्हें श्रुतिधर भी कहा जाता था। इसका अर्थ है विलक्षण स्मृति वाला व्यक्ति होता है। स्वामी विवेकानंद ने david Hume, lmmanuel Kant, Johann Gottlieb fichte, Baruch spinoza, Georg W.F. Hegel, arthu schopenhauer, aguste comte, John Stuart mill और चार्ल्स डार्विन के कामों का अभ्यास किए थे।

 

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस (Swami Vivekananda and Ramakrishna Paramhansa)

स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने का जिज्ञासा था इसीलिए उन्होंने एक बार महा ऋषि देवेंद्र नाथ से उन्होंने एक सवाल पूछा ‘क्या आपने कभी भगवान को देखा है?’ उनके इस सवाल को सुनकर महर्षि देवेंद्र आश्चर्य में पड़ गए। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दिए। उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंस को ही अपना गुरु बना लिए। उनके बताए सदमार्ग पर चलने लगे।

विवेकानंद जी अपने गुरु से इतना प्रभावित हुए की उनके प्रति उनके मन में कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा की भावना बढ़ती गई। 1885में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस कैंसर की बीमारी से ग्रसित थे।इसलिए उन्होंने उनके बहुत सेवा की और अंत में उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह से गुरु और शिष्य के बीच में एक मजबूत रिश्ता बन चुका था।

रामकृष्ण मठ की स्थापना (Ramakrishna Math Establishment)

उसके बाद उन्होंने अपने ग्रुप रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद उन्होंने 12 नगरों में रामकृष्ण संघ की स्थापना की बाद में इनका नाम रामकृष्ण संघ से बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद  मात्र 25 वर्ष के उम्र में उन्होंने अपना घर परिवार त्याग दिया और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे और और गेरुआ वस्त्र धारण करने लगे। तभी से उनका नाम विवेकानंद स्वामी हो गया।

स्वामी विवेकानंद इतने घंटे करते थे ध्यान (meditation)

स्वामी जी रोज ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर तीन घंटे ध्यान करते थे। इसके बाद वे अन्य रोजना के काम में व्यस्त होते और यात्रा पर निकलते । इसके बाद वे दोपहर और शाम को भी घंटों तक ध्यान में रहते थे। रात के वक्त उन्होंने तीन-चार घंटे तक ध्यान किया है। “आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बगैर विश्व अनाथ हो जाएगा।” वे वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू थे।

Swami Vivekananda biography in hindi

स्वामी विवेकानंद के सिध्दांत

स्वामी जी ने भारत में ब्रम्हा समाज, रामकृष्ण मिशन और मठों की स्थापना करके लोगों को आध्यात्म से जोड़ा। उनका एक ही सिध्दांत था कि भारत देश के युवा इस देश को काफी आगे ले जाएं। उन्होंने कहा था कि अगर मुझे सौ युवा मिल जाएं, जो पूरी तरह समर्पित हों तो वे भारत की तस्वीर बदल देंगे। शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो सके। शिक्षा से बच्चे के चरित्र का निर्माण और वह आत्मनिर्भर बने। उन्होंने कहा था कि धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा ना देकर आचरण और संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।

स्वामी विवेकानंद के नाम से यूनिवर्सिटीज की लिंक नीचे दी है

स्वामी विवेकानंद जयंती ( swami Vivekananda Jayanti )

स्वामी विवेकानंद बहुत ही ज्यादा बुद्धिमान और प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे उनके स्वभाव और देश के लिए हमेशा अच्छे कामों के कारण उन्होंने सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। इसी के कारण सभी युवाओं की नजरों में स्वामी विवेकानंद एक आदर्श के रूप में बन गए थे। 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में  देश में मनाया जाता है और वह कहते हैं कि व्यक्ति योग और साधना से जीवन में सब कुछ पा सकता है।

विवेकानंद स्वामी का भारत भ्रमण (Vivekananda Swami’s India tour)

स्वामी विवेकानन्द पूरे भारतवर्ष का भ्रमण पैदल यात्रा के दौरान काशी, प्रयाग, अयोध्या, बनारस, आगरा, वृंदावन इसके अलावा और कई जगह का भ्रमण किए। इस दौरान वे कई सारे राजा, गरीब, संत और ब्रहमणों के घर में ठहरे। इस यात्रा के दौरान कई सारे अलग अलग क्षेत्रों में जाति प्रथा और भेद भाव ज्यादा प्रचलित है। जाति प्रथा को हटाने के लिए बहुत कोशिश किए।

23 दिसंबर 1892 को भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी जा पहुंचे वहा पर उन्होंने तीन दिन तक समाधी में रहे। उसके बाद वे अपने गुरु भाई से मिलने के लिए राजस्थान के अबू रोड जा पहुंचे जहां अपने गुरु भाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से मिले। भारत की पूरी यात्रा देश की गरीबी और दुखी लोगो को देख कर इसेसे पुरे देश को मुक्त करने और दुनिया को भारत के प्रति सोच को बदलने का फैसला किया।

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रामकृष्ण मिशन की स्थापना(Establishment of Ramakrishna Mission)

1897 मैं स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका उद्देश्य यह था कि नव भारत निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ सफाई के क्षेत्र में बढ़ावा देना। वेदसाहित्यशास्त्रदर्शन और इतिहास के ज्ञानेश्वर स्वामी विवेकानंद ने अपनी विनोद प्रतिभा से सभी को अपनी ओर आकर्षित किया और उस समय के नौजवान लोगों के लिए एक आदर्श बने रहे थे। 1898 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना जो अभी भी चल रही है इसके अलावा और 2 मठ की स्थापना की।

स्वामी विवेकानन्द अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन का भाषण (Swami Vivekananda’s speech at the World Conference of Religions of America)

1893 में स्वामी विवेकानन्द  भारत के ओर से अमेरिका के विश्व धर्म समेलन में हिस्सा लिए। इस धर्म समेलान में पूरी दुनिया के धर्म गुरु ने हिस्सा लिया था। इसमें में भाग लेने वाले सभी लोगो ने अपना धार्मिक किताब रखे और भारत के ओर से भागवत गीता को रखा गया। इस सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द जी को देख कर विदेश लोग काफी मजाक उड़ाते थे। पर उन्होंने कुछ भी नही बोले।

जब वे मंच पर जाकर MY BROTHER’S AND SISTER’S OF AMERICA  से संबोधित कर भाषण देना शुरू केए। तब पूरा सभागार उन्हे तालियों की ग्रग्राहट से उनका स्वागत किया। अगले दिन अमेरिका के अखबारों उन्ही की चर्चा था।

एक पत्रकार ने लिखा था, वैसे तो धर्म सम्मेलन के सभी विद्वान ने बहुत अच्छी भाषण दी पर भारत के विद्वान ने पूरे अमेरिका का दिल जीत लिया। इसी तरह उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिससे उस समय के नई लोकप्रिये छवि बनकर उभरे। और आज भी उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विद्वान माने जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद का विश्व भ्रमन (Swami Vivekananda’s world tour)

धर्म सम्मेलन खत्म होने के बाद 3 साल तक अमेरिका में ही रह गए और वह हिंदू धर्म के वेदंग का प्रचार अमेरिका में अलग अलग जगहों पर जाकर किए। वही अमेरिका के प्रेस ने उन्हें  “Cylonic Monik From India” का नाम दिया था। उसके बाद  दो साल तक शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्रइट और बोस्टन  में उन्होंने लेकर दिए थे।

1894 को न्यूयॉर्क में वेदाँग सोसाइटी की स्थापना की। 1896 में अक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैक्स मूलर से हुआ जिन्होंने उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की आत्मकथा लिखे थे। 1879 में उन्होंने अमेरिका से श्रीलंका गए और वहां के लोगो ने उनका स्वागत खुलकर किया। उस समय वे काफी प्रचलित थे। वहां से रामेश्वरम चले गए और फिर 1 मई 1897 को अपना घर कोलकाता चले गए।

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स्वामी विवेकानंद का दूसरा विश्व यात्रा (Swami Vivekananda’s Second World Tour)

20 जून 1899 को फिर अमेरिका गए और वहां कैलिफोर्निया में शांति आश्रम का निर्माण किए और फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।जुलाई 1900 में विवेकानंद जी पेरिस गए जहां उन्होंने कांग्रेस ऑफ द हिस्ट्री रिलेशंस में भाग लिए और करीब 3 महीने तक वहां रहे थे इस दौरान उनका 2 शिष्य वहां बन गया था भगिनी निवेदिता और स्वामी त्रियानंद 1900 के आखरी माह में स्वामी जी भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने फिर से भारत की यात्रा की बोधगया और बनारस यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता जा रहा था, वे अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रसित थे।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (swami vivekananda death)

4 जुलाई 1992 को मात्र 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई। उनके शिष्य का में तो उन्होंने महासमाधि ली थी। आरोही इस महापुरुष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट के किनारे किया गया था।

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन ( swami vivekananda quotes)

  • जब तक तुम अपने आप में विश्वास नहीं करोगे, तब तक भगवान में विश्वास नहीं कर सकते।
  •  हम जो भी हैं हमारी सोच हमें बनाती है, इसलिए सावधानी से सोचें, शब्द व्दितीय हैं पर सोच                              रहती है और दूर तक यात्रा करती है।
  • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त ना कर सको।
  •  हम जितना बाहर आते हैं और जितना दूसरों का भला करते हैं, हमारा दिल उतना ही शुध्द होता है और उसमें उतना ही भगवान का निवास होता है।
  • सच हजारों तरीके से कहा जा सकता है, तब भी उसका हर एक रूप सच ही है।
  • संसार एक बहुत बड़ी व्यायामशाला है, जहां हम खुद को शक्तिशाली बनाने आते हैं।
  • बाहरी स्वभाव आंतरिक स्वभाव का बड़ा रूप है।
  • भगवान को अपने प्रिय की तरह पूजना चाहिए।
  • ब्रम्हांड की सारी शक्तियां हमारी हैं। हम ही अपनी आंखों पर हाथ रखकर रोते हैं कि अंधकार है।

स्वामी विवेकानंद का योगदान ( swami vivekananda ka yogdan )

अपने जीवन काल में स्वामी विवेकानंद ने जो भी कार्य किए और योगदान दिया इन्हें हम तीन भागों में बांट सकते हैं।

  • भारत के प्रति योगदान।
  • हिंदुत्व के प्रति योगदान।
  • वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान।

महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

12 जनवरी,1863 : कलकत्ता में जन्म

सन् 1879 : प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश

सन् 1880 : जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश

नवंबर 1881 : श्रीरामकृष्ण से प्रथम भेंट

सन् 1882-86 : श्रीरामकृष्ण से संबद्ध

सन् 1884 : स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास

सन् 1885 : श्रीरामकृष्ण की अंतिम बीमारी

16 अगस्त, 1886 : श्रीरामकृष्ण का निधन

सन् 1886 : वराह नगर मठ की स्थापना

जनवरी 1887 : वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा

सन् 1890-93 : परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण

25 दिसंबर, 1892 : कन्याकुमारी में

13 फरवरी, 1893 : प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकंदराबाद में

31 मई, 1893 : बंबई से अमेरिका रवाना

25 जुलाई, 1893 : वैंकूवर, कनाडा पहुँचे

30 जुलाई, 1893 : शिकागो आगमन

अगस्त 1893 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. जॉन राइट से भेंट

11 सितंबर, 1893 : विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान

27 सितंबर, 1893 : विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम व्याख्यान

16 मई, 1894 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण

नवंबर 1894 : न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना

जनवरी 1895 : न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ

अगस्त 1895 : पेरिस में

अक्तूबर 1895 : लंदन में व्याख्यान

6 दिसंबर, 1895 : वापस न्यूयॉर्क

22-25 मार्च, 1896 : वापस लंदन

मई-जुलाई 1896 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान

15 अप्रैल, 1896 : वापस लंदन

मई-जुलाई 1896 : लंदन में धार्मिक कक्षाएँ

28 मई, 1896 : ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट

30 दिसंबर, 1896 : नेपल्स से भारत की ओर रवाना

15 जनवरी, 1897 : कोलंबो, श्रीलंका आगमन

6-15 फरवरी, 1897 : मद्रास में

19 फरवरी, 1897 : कलकत्ता आगमन

1 मई, 1897 : रामकृष्ण मिशन की स्थापना

मई-दिसंबर 1897 : उत्तर भारत की यात्रा

जनवरी 1898: कलकत्ता वापसी

19 मार्च, 1899 : मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना

20 जून, 1899 : पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा

31 जुलाई, 1899 : न्यूयॉर्क आगमन

22 फरवरी, 1900 : सैन फ्रांसिस्को में वेदांत समिति की स्थापना

जून 1900 : न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा

26 जुलाई, 1900 : यूरोप रवाना

24 अक्तूबर, 1900 : विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा

26 नवंबर, 1900 : भारत रवाना

9 दिसंबर, 1900 : बेलूर मठ आगमन

जनवरी 1901 : मायावती की यात्रा

मार्च-मई 1901 : पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा

जनवरी-फरवरी 1902 : बोधगया और वारणसी की यात्रा

मार्च 1902 : बेलूर मठ में वापसी

4 जुलाई, 1902 : महासमाधि।

Swami Vivekananda Biography in Hindi |

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय वीडियो के स्वरूप में नीचे दिया गया है

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FAQ

  1. स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध थे?

    विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में स्वामी विवेकानंद हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व  किया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन व वेदांत सोसाइटी की नींव रखी।

  2. स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब और कैसे हुई?

    स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 में 39 वर्ष 5 महीने की उम्र में, समाधि ले ली थी।

  3. बेलूर मठ की स्थापना किसने की थी?

    बेलूर मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी।

  4. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ?

    स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ।

  5. स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम क्या है?

    स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त है।

  6. स्वामी विवेकानंद ने कहां तक की शिक्षा प्राप्त?

    स्वामी विवेकानंद ने बेचलर ऑफ आर्ट की शिक्षा प्राप्त की है।

7 thoughts on “स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय |Swami Vivekananda Biography in Hindi”

  1. धन्यवाद ऐसा ब्लॉग लिखने के लिए,आपका ये ब्लॉग बहुत ही अच्छा या प्रेरणादायक है इसे हमे अच्छी बातें सीखने को मिलती है, आपके शब्दों ने मेरा मनोबल बढ़ा दिया है। आपका अनुभव सहजता से सिखने को प्रेरित करता है। आपकी बातें मुझे सोचने पर मजबूर करती हैं और मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।

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  2. आपका प्रयास अच्छा है लेकिन अत्यंत साधारण सी भी बहुत त्रुटि प्रत्यक्ष हैं जिससे आगे पढ़ने की ललक समाप्त हो गई।
    जैसे
    १) एक जगह १८६० लिखा है जो असत्य है।
    २) एक जगह १९८४ लिखा है।
    और भी अनेक त्रुटि हैं।

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